वीर दुर्गादास राठौर का जीवन परिचय और इतिहास | Veer Durgadas Rathore Biograpbhy and history in hindi

Veer Durgadas Rathore

मारवाड़ के उद्धारक, मारवाड़ के अणबिंदिया मोती, राठौड़ों के यूनिसेफ कहे जाने वाले वीर दुर्गादास राठौड़ को हम सभी लोग जानते हैं। उन्होंने जीवन भर संघर्ष किया तथा मारवाड़ को मुगलों की बुरी नजर से बचाए रखने के साथ-साथ मारवाड़ के भावी राजा अजीत सिंह की भी सुरक्षा करके उन्हें मारवाड़ का शासक बनाया। वीर दुर्गादास राठौड़ एक महान राजपूत योद्धा थे हिंदू धर्म की रक्षा की। Veer Durgadas Rathore की वीरता, कर्तव्य निष्ठा और ईमानदारी के किस्से न सिर्फ मारवाड़ में बल्कि पुरे राजस्थान में गाए जाते हैं | आज भी राजस्थान में कहा जाता है ”माई ऐहड़ौ पूत जण, जेहड़ौ दुर्गादास, बांध मरुधरा राखियो बिन खंभा आकाश” 

इसके अलावा वीर दुर्गादास राठौड़ मुगलो के संघर्ष में इतने  व्यस्त रहते थे कि वह अपना खाना भी घोड़े पर बैठकर ही पकाते थी और खाते थे क्योंकि उन्हें किसी भी पल कहीं पर भी जाना पड़ सकता था।

लेकिन जिस अजीत सिंह के लिए वीर दुर्गादास राठौड़ ने उम्र भर संघर्ष किया अंत समय में अजीत सिंह ने Veer Durgadas Rathore को देश निकाले का आदेश भी दे दिया।

आज के इस पोस्ट में हम आपको बताएँगे वीर दुर्गादास राठौर की जीवनी, इतिहास के बारे में बताएंगे।

Veer Durgadas Rathore Biography in Hindi

पूरा नामवीर दुर्गादास राठौड़
वीर दुर्गादास राठौड़ का जन्म13 अगस्त 1638
वीर दुर्गादास राठौड़ की मृत्यु22 नवंबर 1718 उज्जैन
वीर दुर्गादास राठौड़ की उम्र80 वर्ष 3 माह और 28 दिन
वीर दुर्गादास राठौड़ की जन्म स्थानसालवा गांव
वीर दुर्गादास राठौड़ की उपाधियाँमारवाड़ के उद्धारक, मारवाड़ के अणबिंदिया मोती, राठौड़ों के यूनिसेफ
वीर दुर्गादास राठौड़ की जातिराजपूत
वीर दुर्गादास राठौड़ की धर्महिन्दू

वीर दुर्गादास राठौर का जन्म, माता-पिता, परिवार

वीर दुर्गादास राठौड़ का जन्म 13 अगस्त 1638 को मारवाड़ रियासत की सालवा गांव में हुआ।  दुर्गादास राठौड़ के पिता का नाम आसकरण था जो कि जोधपुर दरबार में महाराजा जसवंत सिंह के मंत्री हुआ करते थे Veer Durgadas Rathore के पिता आसकरण दुनेवा जागीर के जागीरदार हुआ करते थे।

वीर दुर्गादास राठौड़ की माता का नाम नेतकँवर था वीर दुर्गादास राठौड़ के पिता आसकरण इनकी माता नेतकँवर तथा Veer Durgadas Rathore से काफी नाराज थे तो इस कारण से लगभग इन्हे छोड़ दिया था यह दोनों अपना पालन पोषण करने के लिए लूणवा गांव में खेती बाड़ी का काम किया करते थे।

पिता का नामआसकरण
माता का नामनेतकँवर

वीर दुर्गादास राठौर के बचपन की घटना (ऊंट चराने वाले राईका की हत्या)

एक बार रायका जो पशुपालन का कार्य करता है उसने अपने ऊंट दुर्गादास राठौड़ के खेत में चरा दिए, इससे वीर दुर्गादास राठौड़ के खेत की फसल खराब हो गई जब दुर्गादास राठौड़ ने उस रायके से इस बात की शिकायत की तो रायके ने अपनी गलती मानने की बजाय Veer Durgadas Rathore को भला बुरा कहने लगा और इसके साथ ही उन्होंने जोधपुर दरबार के बारे में भी अपशब्द कहे। जब वीर दुर्गादास राठौड़ को अपने राजा तथा अपने राज्य की प्रति अपशब्द सुने तो अपनी कटार निकालकर उस रायका की गर्दन धड़ से अलग कर दी।

 जब यह बात जोधपुर दरबार में जसवंत सिंह तक पहुंची तो उन्होंने वीर दुर्गादास राठौड़ को जोधपुर दरबार में बुलाया। जब Veer Durgadas Rathore जोधपुर दरबार में हाजिर हुए तो जसवंत सिंह ने अपने पास में बैठे मंत्री आसकरण से पूछा कि क्या यह पुत्र आपका बेटा है तब आसकरण ने कहा कि महाराज कपूत कभी पुत्र नहीं होते।

तब वीर दुर्गादास राठौड़ से पूछा कि आपने उस रायका को क्यों मारा, तो Veer Durgadas Rathore ने बताया कि वह रायका आपके राज्य तथा आपके महलों के बारे में अपशब्द बोल रहा था जिस कारण मुझे गुस्सा आ गया और मैंने उस रायका का सिर धड़ से अलग कर दिया।

वीर दुर्गादास राठौड़ के मुंह से ऐसी वीरता पूर्ण बात सुनकर जसवंत सिंह को लगा कि यह बालक साहसी तथा वीर है जो आगे चलकर मारवाड़ की रक्षा के लिए काम आएगा। उन्होंने Veer Durgadas Rathore को अपने पास बुलाया और पीठ थपथपा कर कहा कि भविष्य में यह मारवाड़ का उद्धारक बनेगा और हुआ भी कुछ यही।

महाराजा जसवन्त सिंह की मृत्यु और अजीत सिंह का जन्म

महाराजा जसवंत सिंह की मृत्यु 28 नवंबर 1678 को जमरूद अफगानिस्तान में हो गई जब इनकी मृत्यु हुई तब इनका कोई भी जीवित उत्तराधिकारी नहीं था जिस कारण जोधपुर रियासत पर मुगलों का आधिपत्य पूर्ण रूप से स्थापित हो गया। लेकिन महाराजा जसवंत सिंह जी पत्नी जादम तथा नरूकी उस समय गर्भवती थी तो उन दोनों से 1-1 पुत्र की उत्पत्ति हुई जिनके नाम अजीत सिंह तथा दलभंजन रखा गया हालांकि बाद में दलभंजन कि आगे चलकर मृत्यु हो गई।

वीर दुर्गादास और अजीत सिंह का दिल्ली जाना

जब महाराजा जसवंत सिंह की पत्तियों से प्राप्त पुत्र अजीत सिंह को जोधपुर के सरदार दिल्ली लेकर गए और जोधपुर का शासक घोषित करने की लिए औरंगजेब से बोला तो उन्होंने ऐसा नहीं किया।

औरंगजेब ने जोधपुर को खालसा घोषित करके जसवंत सिंह के भाई अमर सिंह राठौड़ के पौत्र इंद्र सिंह को जोधपुर का राज्य दे दिया। लेकिन इंद्र सिंह राठौड़ नाममात्र के शासक थे पूरा जोधपुर मुगलों के अधीन ही था इस समय  वीर दुर्गादास राठौड़ ने जसवंत सिंह के पुत्र अजीत सिंह को जोधपुर का शासक बनाने के लिए काफी लंबा संघर्ष किया।

 वीर दुर्गादास द्वारा अजीत सिंह को दिल्ली से मुक्त कराना

इसी बीच जसवंत सिंह की दोनों रानियां तथा उनके पुत्र अमर सिंह दिल्ली में  ही रहते थे और जब जसवंत सिंह के प्रमुख सरदारों को लगा की औरंगजेब राज परिवार की हत्या करा देगा, तब दुर्गादास राठौड़ ने अपनी कूटनीति से पूरे राज परिवार को दिल्ली से मारवाड़ ला दिया जब Veer Durgadas Rathore अजीत सिंह को मारवाड़ ला रहे थे तो बीच में मुगल सेना से काफी जोरदार युद्ध भी हुआ जिस कारण कई राजपूत सरदारों ने अपने प्राण त्याग दिए।

इसके बाद अजित सिंह को सिरोही के कालिंदी नामक स्थान पर जयदेव ब्राह्मण के वहां पर रखा गया। इसके बाद जब मुगलों को इस जगह के बारे में पता चला तो वीर दुर्गादास राठौड़ ने अजीत सिंह को वहां से मेवाड़ के महाराणा राज सिंह से सहायता मांग कर केलवा जागीर को अजीत सिंह को देकर संरक्षण प्रदान किया।

इसके बाद काफी संघर्ष हुआ तथा वीर दुर्गादास राठौड़ ने मारवाड़ को बचाए रखा और मारवाड़ के सरदार राजपूतों ने छापामार पद्धति से मुगलों को मारवाड़ से हमेशा दूर रखा

 अजीत सिंह का राज्याभिषेक –

लगभग 20 वर्ष तक मारवाड़ मुगलों के अधीन रहा। इसी बीच वीर दुर्गादास राठौड़ मेवाड़ तथा मराठा राजाओं के संपर्क में रहें जैसे ही वर्ष 1707 में औरंगजेब की मृत्यु होती है तो Veer Durgadas Rathore इसी मौके का फायदा उठाते हुए मारवाड़ से मुगल सेना को खदेड़ देते हैं और जोधपुर पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लेते हैं इसके बाद बड़े ही धूमधाम से वीर दुर्गादास राठौड़ अजीत सिंह को मारवाड़ का शासक बना कर राजगद्दी पर बैठाते हैं और महाराजा जसवंत सिंह को दिया हुआ वचन पूरा करते हैं।

वीर दुर्गादास राठौर का जोधपुर से निष्कासित करना और मृत्यु

वीर दुर्गादास राठौड़ द्वारा उम्र भर मुगलों से संघर्ष किया गया और जिन अजीत सिंह को मारवाड़ का शासक बनाने के लिए उम्र भर प्रयास किया उनको अंतिम समय में अजीत सिंह द्वारा मारवाड़ राज्य से निष्कासित कर दिया गया। जिस कारण वीर दुर्गादास राठौड़ अपने परिवार सहित मेवाड़ चले गए उस समय मेवाड़ के शासक महाराणा अमर सिंह द्वितीय थे जिन्होंने विजयनगर नाम की जागीर का पट्टा वीर दुर्गादास राठौड़ को दे दिया। इसके बाद 1717 में Veer Durgadas Rathore मेवाड़ से उज्जैन की तरफ चले गए और वहीं पर रहते हुए 22 नवंबर 1718 में वीर दुर्गादास राठौड़ की मृत्यु हो गई। यहीं पर शिप्रा नदी के तट पर वीर दुर्गादास राठौड़ का अंतिम संस्कार किया गया जहां पर वीर दुर्गादास राठौड़ की छतरी बनी हुई है।

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FAQ

वीर दुर्गादास का कौन सा गांव था?

जोधपुर रियासत के गांव सालवां कलां

क्या दुर्गादास राठौर राजपूत है?

मारवाड़ साम्राज्य के राठौर राजपूत सेनापति थे।

दुर्गा दास राठौर की छतरी कौन से राज्य में?

दुर्गादास राठौर की छतरी उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है जो मध्य प्रदेश राज्य में है।

दुर्गा दास की मृत्यु कब हुई?

22 नवम्बर 1718

वीर दुर्गादास राठौड़ का जन्म कब हुआ

13 अगस्त 1638

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