आज के इस पोस्ट मे हम आपको Swami Vivekananda के पूरे जीवन के बारे मे बताने जा रहे है इस लेख मे हम आपको स्वामी विवेकानंद जीवनी, जन्म, गुरु, भारत-यात्रा, विदेश यात्रा, समाज-सुधार कार्यक्रम और मृत्यु के बारे मे विस्तार से जानकारी देने जा रहे है।
Swami Vivekananda Biography And Wiki
Real Name | Narendra Nath Dutt ( Swami Vivekananda ) |
Birth | 12 January 1863 |
Birth Place | Kolkata |
NickName | Narendra Nath Dutt |
Guru | Ramakrishna Parmahns |
Profession | Propagating Hinduism |
Father | Vishwanath Dutt |
Mother | Bhuvaneshwari Devi |
Biography | Swami Vivekananda |
Death | 4 July 1902 (age 39) |
Death Place | Belur Math, Principality of Bengal |
Religion | Hindu |
Nationality | Indian |
कथन | “उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये” |
Education | 1884 मे बी. ए. परीक्षा उत्तीर्ण |
संस्थापक | रामकृष्ण मठ, रामकृष्ण मिशन |
साहत्यिक कार्य | राज योग, कर्म योग, भक्ति योग, मेरे गुरु, अल्मोड़ा से कोलंबो तक दिए गए व्याख्यान |
Swami Vivekananda Biography In Hindi
हमारे देश के युवा संन्यासी के रूप में भारतीय संस्कृति को विदेशों में बिखेरनें वाले स्वामी विवेकानंद साहित्य, दर्शन और इतिहास के प्रकाण्ड महान विद्वान थे। स्वामी विवेकानंद ने “योग”, “राजयोग” तथा “ज्ञानयोग” जैसे ग्रंथों की रचना करके भारत के युवा पीढ़ी को एक नई दिशा दिखाई है जिसका प्रभाव जन-मानस पर युगों-युगों तक छाया रहेगा।
स्वामी विवेकानंद ने अपने आध्यात्मिक चिंतन और दर्शन से न सिर्फ लोगों को प्रेरणा दी है बल्कि भारत को पूरे विश्व में गौरान्वित किया है और भारतीय संस्कृति को विश्व के पटल पर लेकर गए।
स्वामी विवेकानंद अध्यात्मिक, धार्मिक ज्ञान के बल पर समस्त मानव जीव को अपनी रचनाओं के माध्यम से सीख दी, स्वामी विवेकानंद हमेशा कर्म पर भरोसा रखने वाले महापुरुष थे, इनके अनुसार आप आज जैसा कर्म करोगे, कल आपको वैसा ही फल मिलेगा।
स्वामी विवेकानंद का मानना था कि अपने लक्ष्य को पाने के लिए तब तक कोशिश करते रहना चाहिए, जब तक की आपको आपका लक्ष्य हासिल नहीं हो जाए।
तेजस्वी प्रतिभा वाले महापुरुष स्वामी विवेकानंद के विचार काफी प्रभावित करने वाले थे, जिसे अगर कोई अपनी जिंदगी में लागू कर ले तो सफलता जरूर हासिल होती है।
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Swami Vivekananda Birth, family, Father, Mother
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ। स्वामी जी के बचपन नाम नरेंद्र दत्त था। विलक्षण प्रतिभा के धनी व्यक्ति स्वामी विवेकानंद ने कोलकाता में जन्म लेकर वहां की जन्मस्थली को पवित्र कर दिया। स्वामी विवेकानंद का असली नाम नरेन्द्रनाथ दत्ता था लेकिन बचपन में प्यार से सब उन्हें नरेन्द्र नाम से पुकारते थे।
उनके पिता श्री विश्वनाथ दत्त थे जो पाश्चात्य सभ्यता में अट्टू विश्वास रखते थे। श्री विश्वनाथ दत्त उस समय कोलकाता हाईकोर्ट के प्रतिष्ठित और सफल वकील थे, जिनकी वकालत के काफी चर्चा हुआ करती थी इसके साथ ही उनकी अंग्रेजी और फारसी भाषा में भी अच्छी पकड़ थी। स्वामी विवेकानंद के पिता अपने पुत्र नरेंद्र को भी इंग्लिश पढ़ाकर पाश्चात्य सभ्यता के ढंग पर ही चलाना चाहते थे। नरेंद्र की बुद्धि बचपन से बड़ी तेज थी और भगवान को पाने की लालसा भी प्रबल थी। भगवान को पाने हेतु वे पहले ब्रह्म समाज में गए, किंतु वहाँ उनके मन को संतोष नहीं हुआ।
विवेकानंद जी की माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था, जो कि धार्मिक विचारों की महिला थी वे भी काफी प्रतिभावान महिला थी जिन्होनें धार्मिक ग्रंथों जैसे रामायण और महाभारत में काफी अच्छा ज्ञान प्राप्त किया था। इसके साथ ही वे प्रतिभाशाली और बुद्धिमानी महिला थी जिन्हें अंग्रेजी भाषा की भी काफी अच्छी समझ थी।
स्वामी विवेकानंद दयालु स्वभाव के व्यक्ति थे जो कि न सिर्फ मानव बल्कि जीव-जंतु को भी दया भावना से देखते थे। वे हमेशा भाई-चारा, प्रेम की शिक्षा देते थे स्वामी विवेकानंद जी का मानना था कि प्रेम, भाई-चारे और सदभाव से जिंदगी आसानी से काटी जा सकती है और जीवन के हर संघर्ष से आसानी से निपटा जा सकता है।
वहीं स्वामी विवेकानंद अपनी मां की छत्रसाया का इतना गहरा प्रभाव पड़ा की वे घर में ही ध्यान में तल्लीन हो जाया करते थे इसके साथ ही उनहोनें अपनी मां से भी शिक्षा प्राप्त की थी। इसके साथ ही स्वामी विवेकानंद पर अपने माता-पिता के गुणों का गहरा प्रभाव पड़ा और उन्हें अपने जीवन में अपने घर से ही आगे बढ़ने की प्रेरणा मिली।
स्वामी जी बचपन से ही काफी तेज बुद्धि के व्यक्ति थे वे अपनी प्रतिभा के इतने प्रखर थे कि एक बार जो भी कोई उनके नजर के सामने से गुजर जाता था वे उसे कभी भूलते नहीं थे और दोबारा उन्हें कभी उस चीज को फिर से पढ़ने की जरूरत भी नहीं पढ़ती थी। कहते है स्वामी जी जिस किताब को एक बार पढ़ लेते थे उसे फिर से पढ़ने की कभी जरूरत ही नही पड़ती थी।
स्वामी विवेकानंद जी युवा समय मे ही साधू-सन्यासियों से काफी प्रभावित हो गए थे, उस समय मे वे शिव, राम-सीता की तस्वीरों के सामने ध्यान लगते थे ओर उस अखंड ध्यान के समय उनके आस-पास क्या हो रहा है उसका उनको पता भी नही चलता था।
Swami Vivekananda Education
स्वामी विवेकानन्द “मैकाले” द्वारा प्रति-पादित और उस समय प्रचलित अग्रेजी शिक्षा व्यवस्था के विरोधी थे, क्योंकि इस शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ अग्रेजी बाबुओं की संख्या बढ़ाना था। वह ऐसी शिक्षा चाहते थे जिससे बालक का सर्वांगीण विकास हो सके। बालक की शिक्षा का उद्देश्य उसको आत्मनिर्भर बनाकर अपने पैरों पर खड़ा करना है। स्वामी विवेकानन्द ने बताया की शिक्षा वही सबसे अच्छी है जो मनुष्य को समाज से जोड़े रखती है ओर अपने धर्म के मार्ग का अनुचरण कर सके।
शिक्षा ऐसी हो जिससे बालक का शारीरिक, मानसिक विकास हो सके। बालिकाओं एवं बालक दोनों को समान शिक्षा देनी चाहिए, धार्मिक शिक्षा, पुस्तकों द्वारा न देकर आचरण एवं संस्कारों द्वारा देनी चाहिए।
स्वामी विवेकानन्द ने 8 वर्ष की आयु मे ही 1871 मे स्कूल मे दाखिला ले लिया, इनके स्कूल का नाम ईश्वर चंद विद्यासागर के मेट्रोपोलिटन संस्थान था सन् 1877 में उनका परिवार रायपुर चला गया, सन् 1879 में उनका परिवार वापस कलकत्ता आ गया। वह प्रेसीडेंसी कॉलेज प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिवीज़न से अंक प्राप्त करने वाले वे एकमात्र छात्र थे।
स्वामी जी धर्म, दर्शन, इतिहास और सामाजिक विज्ञान जैसे विषयो मे काफी रुचि लेते थे। स्वामी जी ने वेद, उपनिषद, गीता, रामायण और कई पुराणों में तथा हिन्दू शास्त्रों में गहन रुचि लेते थे। स्वामी विवेकानंद जी को शास्त्रीय संगीत का भी पूर्ण ज्ञान था। वे नियमित रूप से शारीरिक व्यायाम और खेलो में भी भाग लिया करते थे।
स्वामी जी ने जनरल असेंबली इंस्टीट्यूशन से यूरोपीय इतिहास का अध्ययन किया । सन् 1881 में उन्होंने “ललित कला” की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1884 में “कला स्नातक” की डिग्री कर ली। स्वामी विवेकानन्द जी ने स्पेंसर की किताब एजुकेशन का बंगाली में अनुवाद किया। विवेकानन्द हर्बट स्पेंसर की किताब से काफी प्रभावित थे। अनेक बार इन्हे श्रुतिधर भी कहा गया है।
स्वामी विवेकानंद के गुरु:- श्री रामकृष्ण परमहंस
स्वामी विवेकानन्द के गुरु का नाम श्री रामकृष्ण परमहंस था, स्वामी विवेकानन्द ने रामकृष्ण के बारे मे
था तभी सवामी जी ने बहुत से लोगो, ओर सन्यासियों से मुलाक़ात कराते थे ओर उनसे एक ही सवाल पूछते थे की “क्या आपने भगवान को देखा है”
तब लोग स्वामी जी को कुछ भी जबाव नही दिया करते थे इसी तरह एक बार वहीं प्रश्न श्री रामकृष्ण को दक्षिणेश्वर काली मंदिर के परिसर में अपने निवास पर रखा। तब एक पल की हिचकिचाहट के बिना, श्री रामकृष्ण ने उत्तर दिया ” हा , मेरे पास है मैं ईश्वर को उतना ही स्पष्ट देख सकता हु , जितना की आपको देख सकता हु केवल गहरे अर्थो मे”
श्री रामकृष्ण के इस जबाव से स्वामी जी चकित हो गए, रामकृष्ण ने स्वामी जी के दिल को भी अपने प्रेम से जीत लिया था। यही पर स्वामी ने काही ओर भी सवाल-जबाव किए।
1884 मे स्वानी जी के पिता जी का देहांत हो ज्ञ तब स्वामी जी कफी विचलित हो गए, तब गुरु जी के कहने पर स्वामी जी ने भगवान की आराधना करना शुरू कर दिया। लेकिन बाद मे स्वामी जी ने साधना शुरू कर दी ओर एक तपस्वी बन गए।
1885 मे गले के कैंसर से पीड़ित श्री रामकृष्ण गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। सितंबर 1885 में, श्री रामकृष्ण को कलकत्ता के श्यामपुर ले जाया गया, उन्होंने एक साथ अपने गुरु का पालन-पोषण समर्पित भाव से किया। 16 अगस्त 1886 को श्री रामकृष्ण ने अपना शरीर त्याग दिया। श्री रामकृष्ण के निधन के बाद, नरेंद्र नाथ सहित उनके लगभग पंद्रह शिष्य कलकत्ता के बारानगर में एक जीर्ण-शीर्ण इमारत में एक साथ रहने लगे, जिसका नाम रामकृष्ण मठ था।
रामकृष्ण मठ मे 1887 में, उन्होंने औपचारिक रूप से दुनिया से सभी संबंधों को त्याग दिया और भिक्षुणता की प्रतिज्ञा ली।
1886 मे स्वामी जी ने पूरे भारत भ्रमण करने के लिए निकाल पड़े, स्वामी विवेकानन्द ने भारत के विभिन्न हिस्सो की यात्रा की और पीड़ित ओर सामाजिक कुरुतियों के बारे मे लोगो को बताने लगे।
स्वामी विवेकानन्द और विश्व धर्म महासभा, अमेरिका
विश्व धर्म महासभा अमेरिका के शिकागो में आयोजित की गयी, स्वामी विवेकानन्द ने भारत की और से सनातन धर्म का प्रतिनिधित्व किया। भारत का आध्यात्मिकता से परिपूर्ण वेदांत दर्शन अमेरिका और यूरोप के हर एक देश में स्वामी विवेकानंद के द्वारा ही पहुंचा पाया है । स्वामी विवेकानन्द जी ने राम कृष्ण मिशन की स्थापना की थी जो आज भी अपना कार्य उसी प्रकार कर है।
स्वामी विवेकानन्द प्रमुख रूप से भाषण शुरू करते समय “मेरे अमेरिकी भाइयो और बहनो“ बोलने की वजह से जाना जाता था। उनके बोलने के इस कथन ने सबका दिल जीत लिया था।
उनके भाषण के इस तरह शुरू करने के कारण लोगों ने हिन्दू धर्म ओर भारत के बारे मे जाना , इस भाषण से पहले अमेरिका के लोगों मे भारत के बारे मे भिन्न-भिन्न मत थे।
स्वामी विवेकानन्द की मौत
4 जुलाई 1902 को स्वामी जी ने संध्या के समय मे 3 घंटे तक योग किया ओर बाद मे शाम के 7 बजे अपने कुठिया मे चले गए ओर उनके ध्यान मे व्यवधान न डालने को कहा, और रात के 9 बजकर 10 मिनट पर उनकी मृत्यु की खबर मठ में फैल गई। कहा जाता है की स्वामी जी ने इच्छा-मृत्यु प्राप्त की थी।
मात्र 39 वर्ष की आयु मे स्वामी जी ने अपने देश मे फैली अंधविश्वास और कुरुटिया का घोर विरोध किया ओर अपने धर्म का विश्व स्तर पर प्रचार किया।
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