लोकदेवता बाबा रामदेवजी महाराज की जीवनी और चमत्कार | Baba Ramdev ji Maharaj Jivan-Katha

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द्वारकाधीश अवतारी बाबा रामदेव जी महाराज को राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, पंजाब आदि राज्यों में रामसा पीर’,’रुणिचा रा धणी’ व बाबा रामदेव’ आदि नामों से जाना जाता है। रामदेव जी महाराज (Baba Ramdev ji Maharaj) ने समाज में व्याप्त छुआछूत, ऊँच-नीच आदि बुराइयों को दूर कर सामाजिक समरसता स्थापित की थी। बाबा रामदेव जी महाराज की समाधि स्थल रामदेवरा में हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष दूज से भाद्रपद शुक्ल पक्ष दशमी तक भारी मेला लगता है इसमें कम से कम 50 लाख से ज्यादा लोग आते है।

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इस मेले का अनुमान आप इस बात से लगा सकते हैं कि रामदेवरा (जहां मेला लगता है) से 182 किलोमीटर दूर जोधपुर शहर में बाबा रामदेव जी के भक्त जो पैदल आते हैं वह पूरे जोधपुर शहर का ट्रैफिक जाम कर लेते हैं। 

Baba Ramdev ji Maharaj के भक्त पूरे भारत में होने के साथ-साथ पाकिस्तान में भी लाखों की संख्या में लोग बाबा रामदेव जी महाराज को मानते हैं बाबा रामदेव जी महाराज को हिंदू और मुसलमान दोनों ही पूजते हैं।

आज के इस पोस्ट में हम आपको लोकदेवता बाबा रामदेव जी महाराज की जीवनी, चमत्कार, इतिहास, जन्म-कथा, भैरव राक्षस वध, 24 प्रमाण (पर्चे), समाधि, रामसा पीर कहे जाने की कहानी के बारे में बताएंगे।

Table of Contents

Baba Ramdev ji Maharaj Biography in Hindi

पूरा नामबाबा रामदेव जी महाराज
उपनामपीरों के पीर रामापीर, रामा धणी, रामदेव बाबो
जन्मविक्रम सवंत 1409 भाद्रपद शुक्ल द्वितीया
जीवित समाधिभाद्रपद एकादशी विक्रम संवत् 1442 (33 वर्ष) रामदेवरा
जन्म स्थानउण्डू काश्मीर बाड़मेर राजस्थान
विवाहनैतलदे के साथ विक्रम संवत् 1426
सम्प्रदाय/पंथकामड़िया
जातितंवर-वंशीय राजपूत
धर्महिन्दू
घोड़े का नामलीलो
मुख्य-मंदिररूणिचा-रामदेवरा-जैसलमेर
प्रतीक चिन्हपगलिया

बाबा रामदेव जी महाराज का जन्म-कथा

पोखरण तथा उसके आसपास के क्षेत्र पर बाबा रामदेव जी के पिताजी अजमाल जी महाराज का शासन चलता था अजमाल जी महाराज निसंतान थे जिस कारण यह काफी ज्यादा दुखी भी रहते थे इसके अलावा पोकरण क्षेत्र में भैरव नाम के एक राक्षस का आतंक मचा हुआ था जिसे अजमाल जी महाराज अपनी प्रजा  की रक्षा के लिए कुछ नहीं कर पा रहे थे।  अजमाल जी महाराज द्वारिकाधीश भगवान श्री कृष्ण के अनन्य भक्त थे तथा कई वर्षों से पोकरण से पैदल द्वारकाधीश (गुजरात) की यात्रा करते थे।

विक्रम संवत 1408-09 में अजमाल जी महाराज सुबह के समय में अपने राज्य के भ्रमण के लिए निकलते हैं बारिश का समय था काफी अच्छी बारिश हुई थी इस कारण कई सारे किसान अपने खेत जोतने के लिए खेतों की तरफ जा रहे थे तभी वह लोग अजमाल जी महाराज को सामने आते देख वापस अपने घरों की तरफ रवाना हो जाते हैं इससे अजमाल जी महाराज को काफी दुख होता है और वह उनसे पूछते हैं कि इस बार बारिश तो काफी अच्छी हुई है लेकिन आप अपने हल लेकर वापस घरो की तरफ क्यों जा रहे हैं तब उनमें से एक भोले भाले किसान ने अजमाल जी महाराज को बताया कि महाराज आप निसंतान है और  निसंतान का मुंह देख कर खेत में बीज बोयेंगे तो हमारे खेत में फसल अच्छी नहीं होगी।

उस भोले भाले किसान की बात सुनकर अजमल जी महाराज अपने घर आ जाते हैं और काफी दुखी मन से बैठ जाते हैं तब अजमाल जी महाराज की पत्नी मेंणादे उनसे कहती है इस तरीके से दुखी बैठने से कुछ नहीं होने वाला, आप इस बार फिर द्वारिकाधीश भगवान श्री कृष्ण के दर्शनों के लिए द्वारका जाइए और उनसे विनती कर के पुत्र प्राप्ति की कामना कीजिए।

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 इसके बाद अजमाल जी महाराज  पोकरण से द्वारका के लिए पैदल यात्रा पर रवाना हो जाते हैं द्वारिका जाकर अजमाल जी महाराज द्वारिकाधीश मंदिर में भगवान कृष्ण की मूर्ति के सामने अपनी दुविधा सुनाते हैं लेकिन भगवान कृष्ण की मूर्ति से उन्हें कोई जवाब नहीं मिलता है और जब अजमाल जी महाराज कृष्ण की मूर्ति के सामने देखते हैं तो मूर्ति उन्हें मुस्कुराती हुई नजर आती हैं अजमाल जी को गुस्सा आ जाता है और वह अपने साथ में भगवान के लिए भोग में जो लड्डू लाते हैं वह कृष्ण की मूर्ति को मार देते हैं तो उसी समय आकाश में बिजली कड़कड़ाती है और उस मंदिर का पुजारी आकर अजमाल जी महाराज से कहता है कि आप भगवान को यहां पर क्यों ढूंढ रहे हैं भगवान तो इस समय समुंदर के गहराइयों में विश्राम कर रहे हैं और आप समुद्र में जाकर उनसे मिल लीजिए। अजमाल जी महाराज भगवान के प्रेम में अंधे थे तो उन्होंने समुद्र में छलांग लगा दी। कुछ गहराई में जाने पर उन्हें भगवान द्वारकाधीश दर्शन देते हैं।

अजमाल जी महाराज भगवान कृष्ण को देखने के बाद सोच में पड़ जाते हैं की द्वारिकाधीश खुद तो सिर पर पट्टी बांधे है  वो मेरी पीड़ा कैसे ठीक करेंगे। तब अजमलजी उनसे बोलते हैं कि आपके सिर पर चोट किस चीज की आई है तब द्वारिकाधीश भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि मेरा एक भोला भक्त हैं जिसने मेरे सिर पर लाडू से मार दी है तब अजमाल जी महाराज समझ जाते हैं कि मैंने उस मूर्ति को मारा लेकिन वह मेरे भगवान को लग गई है तब उनसे माफी मांगते हैं और अपना दुखड़ा सुनाते हैं।

तब भगवान द्वारिकाधीश उन्हें वचन देते हैं कि आप चिंता मत कीजिए, आपके घर में बड़ा पुत्र वीरमदेव और छोटे पुत्र के रूप में मैं खुद भाद्रपद शुक्ल पक्ष द्वितीया को आपके घर में अवतार लूंगा तब अजमाल जी महाराज खुश होकर वापस पोकरण आ जाते हैं।

इसके बाद कुछ समय बीतने के बाद अजमाल जी महाराज के घर में एक पुत्र का जन्म होता है जिसका नाम वीरमदेव रखा जाता है उसके कुछ समय बाद ही विक्रम संवत 1409 भाद्रपद शुक्ल द्वितीया को भगवान द्वारकाधीश अपने बाल रूप में वीरमदेव जी के पालने में अवतार लेते हैं  इस दृश्य को देखकर माता मेणादे घबरा जाती है और वह अजमाल जी को यह बात बताती है तब अजमाल जी उन्हें बताते हैं कि भगवान द्वारकाधीश स्वयं हमारे घर में आए हैं इस तरीके से बाबा रामदेव जी महाराज का जन्म अवतार होता है।

बाबा रामदेव जी महाराज का जन्म 1352 ईस्वी सन में हुआ था तथा समाधि 1385 ईस्वी सन रामदेवरा में ली थी। इस पोस्ट में हिन्दू कैलेण्डर के हिसाब से आकड़े बताये है।

बाबा रामदेव जी के पिता का नामतँवर वंशीय ठाकुर अजमाल जी
बाबा रामदेव जी के माता का नाममैणादे
बाबा रामदेव जी के पत्नी का नामनिहालदे (नेतलदे)
बाबा रामदेव जी के भाई का नामवीरमदेव जी
बाबा रामदेव जी के बहन का नामसुगना बाई और लाछा बाई
बाबा रामदेव जी के पुत्रो का नामसादोजी और देवोजी (दो पुत्र)

बाबा रामदेव जी महाराज के बचपन के चमत्कार

बाबा रामदेव जी महाराज भगवान श्री कृष्ण के अवतार माने जाते हैं तथा उन्होंने बचपन से ही चमत्कार देना प्रारंभ कर दिया था।

बाबा रामदेव जी महाराज पहला परचा

बाबा रामदेव जी ने पहला चमत्कार अपनी माता मेणादे को दिया था एक बार माता मेणादे अपने दोनों बच्चों को दूध पिला रही थी इसी बीच चूल्हे पर रखा हुआ दूध गर्म होकर गिरने ही वाला था कि बाबा रामदेव जी ने अपने हाथ को बड़ा करके सोते सोते ही उस दूध को चूल्हे से नीचे उतार लिया। यह देखकर माता मेणादे विश्वास हो गई कि यह बालक Baba Ramdev ji Maharaj भगवान श्री कृष्ण द्वारकाधीश का अवतार है। 

बाबा रामदेव जी महाराज दूसरा परचा

श्री बाबा रामदेव जी महाराज ने दूसरा परचा एक दर्जी को दिया यह दर्जी अपने व्यापार में धोखेबाजी करता था लोगों के नए कपड़े लेकर पुराने कपड़े सील कर दे देता था जिस कारण बाबा रामदेव जी ने उन्हें सबक सिखाने के लिए सोच लिया। Baba Ramdev ji Maharaj ने अपने पिताजी अजमालजी से घोड़े की जिद्द की, कि मुझे एक घोड़ा चाहिए तो बाबा रामदेव जी के पिताजी अजमाल जी ने दर्जी के पास कपड़े का घोड़ा बनाने के लिए दे दिया। दर्जी ने लालच दिखाते हुए कपड़े के  घोड़े के अंदर पुराने कपड़े भर दिए उसके बाद जब घोड़ा बाबा रामदेव जी को दिया गया तो बाबा रामदेव जी ने अपने उस घोड़े को आकाश में उड़ा दिया और जब घोड़ा और बाबा रामदेव जी आकाश में उड़ गए। तब अजमाल जी महाराज ने उस दर्जी पर गुस्सा हुए की आपने घोड़े काली विद्या की है और तब उस दर्जी ने अपनी गलती की माफी मांगकर सारी सच्चाई बताई।

बाबा रामदेव जी महाराज द्वारा भैरव राक्षस वध

बाबा रामदेव जी के जन्म का एक मुख्य उद्देश्य भैरव राक्षस का वध करना भी था और अब समय आ गया था कि बाबा रामदेव जी को भैरव राक्षस का वध करना था जिस कारण बाबा रामदेव जी अपने साथियों के साथ पोकरण के पास बालीनाथ जी महाराज की धूणी के पास गेंद खेलने का विचार करके चले गए वहां पर जाने के बाद Baba Ramdev ji Maharaj ने गेंद को बहुत तेज मारा, जिस कारण वह गेंद बालीनाथ जी महाराज की धूणी के पास चली गई। अब खेल शुरू होने से पहले एक शर्त रखी गई थी कि जो ज्यादा दूरी पर मारेगा, वही गेंद लेकर आएगा तो बाबा रामदेव जी महाराज उस गेंद को लेने के लिए बालीनाथ जी महाराज की धूणी की तरफ चले गए और जब Baba Ramdev ji Maharaj गेंद ढूंढ रहे थे तभी वहां पर भैरव राक्षस के आने के संकेत मिले। बालीनाथ जी महाराज उस बालक को देखकर काफी घबरा गए और उन्हें लगा कि अब भैरव राक्षस इस बालक का वध कर देगा और इसे खा लेगा। तब उन्होंने उस बालक को अपने कुटिया में गुदड़ी (बिस्तर) से ढक कर सुला दिया और हिलने का मना कर दिया।

लेकिन बाबा रामदेव जी महाराज को तो भैरव राक्षस का वध करना था इस कारण जब भैरव राक्षस बालीनाथ जी महाराज से पूछने लगा कि मुझे यहां पर किसी मनुष्य की गंध आ रही है और मुझे उसको खाना है बालीनाथ जी महाराज ने कहा कि यहां पर कोई मनुष्य नहीं है आप यहां से चले जाइए लेकिन भैरव राक्षस ने बालीनाथ जी महाराज को धक्का मारकर कुटिया के अंदर चला गया जब कुटिया में बाबा रामदेव जी पैर हिला रहे थे और तब भैरव राक्षस ने उस गुदड़ी (बिस्तर) को खींचना प्रारंभ कर दिया। 
लेकिन काफी समय तक गुदड़ी खींचने के बाद भैरव राक्षस को समझ में आ गया कि यह कोई चमत्कारी है और इस कारण भैरव राक्षस वहां से भाग निकला, लेकिन इतने समय में बालीनाथ जी महाराज को भी आभास हो गया कि यह जो बालक मेरी कुटिया में सो रहा है यह कोई चमत्कारी बालक है और तभी बालीनाथ महाराज ने कहा की “रामदेव जल्दी उठो और राक्षस का नाश करो” तब बाबा रामदेव जी महाराज ने अपने घोड़े पर बैठकर भैरव राक्षस का पीछा करना प्रारंभ किया और पोकरण से कुछ ही दूरी पर भैरव राक्षस को एक विशाल गुफा में डाल दिया तब भैरव राक्षस ने रामदेव जी महाराज से विनती की कि मैं यहां पर क्या खाहुगा, तब रामदेव जी महाराज ने भैरव राक्षस को कहा कि पोकरण के महाराज आपको यहां पर खाने पीने के लिए साल में एक बार रोटी दे देंगे और मेरे समाधि लेने के बाद मेले में जब एक लाख से ज्यादा लोग इकट्ठे होंगे तो उसमें से एक व्यक्ति का भक (भक्षण) आप स्वयं ले लेना।

इसके बाद बाबा रामदेवजी महाराज ने बालीनाथ जी से शिक्षा प्राप्त की। बाबा रामदेवजी के गुरु का नाम बालीनाथ है।

बाबा रामदेव जी द्वारा पांच पीरों को चमत्कार देना

बाबा रामदेव जी को रामसापीर क्यों कहा जाता है

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बाबा रामदेव जी की ख्याति भारत में काफी ज्यादा थी लोग इन्हें काफी ज्यादा मानते थे इस बात की सूचना मक्का में बैठे मुस्लिम मौलवियों को दी गई और उन्हें कहा गया कि भारत में आप से भी बड़ा एक पीर पैदा हुआ है जो बहुत ही ज्यादा चमत्कारी है इस बात की जांच करने के लिए मक्का से पांच पीर रामदेवरा के लिए रवाना हो गए।

जब यह पीर रामदेवरा से 12 किलोमीटर दूर दूर थे तब इन्होंने एक व्यक्ति को अपना घोड़ा चराते हुए देखा तो उन्होंने कहा कि हमें रामदेवरा जाना है कौन सा रास्ता है तब बाबा रामदेव जी ने उन्हें रास्ता बताया और पूछा कि आपको रामदेवरा में क्या काम है तो उन्होंने कहा कि हमें रामदेव जी महाराज से मिलना है तब रामदेव जी महाराज ने कहा  मैं ही रामदेव हूं तो उन पीरो को विश्वास नहीं हुआ।  लेकिन जब बाद में Baba Ramdev ji Maharaj ने उन्हें थोड़ा विश्राम करने के लिए बोला तो पीरों ने बोला कि हमारे लिए आसन नहीं है तो बाबा रामदेव जी ने अपने चमत्कार से उनके लिए बैठने की व्यवस्था की और उसके बाद पीरो को भोजन के लिए बोला।
लेकिन पीरों ने भोजन करने से मना कर दिया और कहा कि हमारे कटोरे मक्का में ही रह गए हैं हम हमारे कटोरो कि बिना भोजन नहीं करते हैं तब बाबा रामदेव जी ने अपने एक हाथ को मक्का की तरफ करके चमत्कार से पांच पीरों के कटोरे ला दिए।  जिन्हें देखकर पीर काफी अचंभित हो गए। जब उन्होंने अपने वही कटोरे देखे तब उन्होंने बाबा रामदेव जी को एक पदवी दी कि आप “पीरों के पीर है” इसलिए आज कई लोग बाबा रामदेव जी को रामसापीर के नाम से भी जानते हैं और मुसलमान भी Baba Ramdev ji Maharaj को इसी कारण से पूजते है।

जहां पर बाबा रामदेव जी महाराज ने पांच पीरों को चमत्कार दिया था वह जगह आज भी रामदेवरा से मात्र 12 किलोमीटर दूर पंच पीपली नाम से स्थित है जहां पर आपको आज भी वह स्थान देखने को मिल जाएगा जहां पर बाबा रामदेव जी ने उन्हें भोजन करवाया था।

बाबा रामदेव जी महाराज के प्रमुख पर्चे (चमत्कार)

लोक देवता बाबा रामदेव जी ने अपने जीवनकाल के दौरान 24 चमत्कार (परचे) किये दिए जिन्हें लोग लोकगाथाओं में बाबा रामदेव के भक्तगण आज भी बड़े चाव से गाते हैं।

  1. माँ मैनादे को इन्होने पहला चमत्कार दिखाया।
  2. दर्जी को चिथड़े का घोड़ा बनाने पर चमत्कार
  3. भैरव राक्षस वध
  4. सेठ बोहितराज की डूबती नाव उभारकर
  5. लक्खी बिनजारा को पर्चा
  6. रानी नेतल्दे को पर्चा
  7. बहिन सुगना को पर्चा
  8. पांच पीरों को पर्चा

बाबा रामदेव जी ने कुल 24 पर्चे दिए।

राजस्थानी भजन सम्राट प्रकाश जी माली द्वारा बाबा रामदेव जी की जीवनी

बाबा रामदेव जी महाराज का ब्याव (विवाह)

बाबा रामदेव जी का विवाह विक्रम संवत 1426 में अमरकोट की राजकुमारी दलपत जी सोढा की पुत्री नैतलदे के साथ हुआ। नैतलदे जन्म से विकलांग थी और बाबा रामदेव जी सवरी में फेरों के लिए पहुंचे तो नेतलदे पैरों से चल नहीं पा रही थी तो बाबा रामदेव जी अपना हाथ आगे बढ़ाया तो नैतलदे ठीक हो गयी। इस चमत्कार को देखने के बाद यहां के लोगों में काफी हर्ष उल्लास तथा बाबा के प्रति श्रद्धा भाव बढ़ा।

जब Baba Ramdev ji Maharaj विवाह करके वापस रामदेवरा आये  सुगना बाई तिलक लगाने के लिए नहीं आई कारण पूछा गया तो बताया गया कि सुगना बाई के पुत्र यानी रामदेव जी के भांजे को सांप ने काट लिया है और वह मर चुका है तब बाबा रामदेव जी ने अपने भांजे को आवाज लगाई और वह उठकर दौड़ता हुआ  यह सब देखकर लोगों में खुशी का माहौल सा गया।

रामदेवजी के दो पुत्र थे, जिनका नाम सादोजी और देवोजी था।

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बाबा रामदेवजी महाराज द्वारा जीवित समाधि

बाबा रामदेवजी ने जाति व्यवस्था का विरोध करते हुए सामाजिक समसरता का संदेश दिया। Baba Ramdev ji Maharaj ने जीव मात्र के प्रति दया, गुरु महिमा, पुरुषार्थ एवं मानव के गौरव को महत्व दिया। बाबा रामदेवजी को बहुत बड़ा समाज सुधारक कहे तो गलत नहीं होगा।

समाज में अछूत कहे जाने वाले वर्ग के साथ बैठकर भजन करना, दलित डालीबाई का बहिन के रूप में पोषण करना, धार्मिक आडम्बरों का पुरजोर विरोध करना तथा हिन्दू मुस्लिम एकता पर बल देना आदि रामदेवजी के प्रमुख कार्य थे।

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जन कल्याण के कार्य करते हुए बाबा रामदेव जी महाराज ने मात्र 33 वर्ष की उम्र में समाधि लेने का विचार कर लिया। उन्होंने समाधि खोदने के लिए अपने परिजनों तथा आसपास के लोगों को बुलाया। लोगों ने बाबा रामदेव जी की समाधि को खोद दिया और उसके बाद वह समाधि लेने ही वाले थे कि इनकी धर्म बहन डाली बाई वहां पर आ गई और उन्होंने कहा कि आप से पहले समाधि में लूंगी और यह समाधि मेरी है तब लोगों ने उनसे पूछा कि इसका क्या प्रमाण है तब डाली बाई ने बताया कि आप इस समाधि को थोड़ा और खोदे, इस समाधि में आपको आटी, डोरा, कांगसी मिलेंगे तो समझ लेना कि यह समाधि मेरी है थोड़ा और खोदने पर डाली बाई के द्वारा बताए गयी वस्तुएं मिल गई तो डाली बाई समाधि में बैठ गए उन्होंने समाधि ले ली।

इसके दूसरे दिन बाबा रामदेव जी ने डाली बाई की समाधि के थोड़े ही दूरी पर अपनी समाधि खुदवाई और भाद्रपद एकादशी विक्रम संवत् 1442 को रामदेवजी ने अपने हाथ से श्रीफल लेकर सब बड़े-बुजुर्गों को प्रणाम किया तथा सबने पुष्प चढ़ाकर Baba Ramdev ji Maharaj का अंतिम पूजन किया। रामदेव जी ने समाधि में खड़े होकर सबके प्रति अपने अंतिम उपदेश देते हुए कहा कि प्रतिमाह की शुक्ल पक्ष की दूज को पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन करके पर्वोत्सव मनाना, रात्रि जागरण करना।

प्रतिवर्ष मेरे जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में तथा अंतर्ध्यान समाधि होने की स्मृति में मेरे समाधि स्तर पर मेला लगेगा, मेरे समाधि पूजन में भ्रांति व भेदभाव मत रखना, मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहूंगा। 

आज के समय में बाबा रामदेव जी के समाधि स्थल रामदेवरा जैसलमेर में आपको प्रतिदिन हजारों की संख्या में लोग दर्शनों के लिए मिल जाएंगे तथा बाबा रामदेव जी की बीज के दिन यहां पर लाखों की संख्या में लोग दर्शनों के लिए आते हैं तथा देश के अलग-अलग कोनों से लोग पैदल यात्रा करके Baba Ramdev ji Maharaj के दर्शनों को आते हैं। बाबा रामदेव जी के दर्शनों के लिए पैदल आने वाले लोगों को जातरू कहा जाता है तथा इनके हाथ में जो ध्वजा होती है उन्हें नेजा कहा जाता है।

बाबा रामदेवजी के द्वारा तथा जीवनी पर लिखी गयी किताबे

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FAQ

बाबा रामदेव जी कौन थे?

रामदेव जी (बाबा रामदेव, रामसा पीर, रामदेव पीर) राजस्थान के एक लोक देवता हैं जिनकी पूजा सम्पूर्ण राजस्थान,गुजरात व मध्य्प्रदेश समेत कई भारतीय राज्यों में की जाती है। इनके समाधि-स्थल रामदेवरा (जैसलमेर) पर भाद्रपद माह शुक्ल पक्ष द्वितीया सेे दसमी तक भव्य मेला लगता है।

रामदेव जी महाराज का जन्म

श्री रामदेवजी का जन्म संवत् 1409 में भाद्रपद मास की दूज को राजा अजमलजी के घर हुआ

रामदेव जी महाराज का जन्म कहा हुआ था

उण्डू काश्मीर बाड़मेर राजस्थान

रामदेव जी महाराज की कथा

बाबा रामदेव जी महाराज की पत्नी का क्या नाम था?

नैतलदे

बाबा रामदेवजी माता-पिता कौन थे

माता- मैणादे पिता- अजमालजी

रामदेव जी की मृत्यु कैसे हुई?

बाबा रामदेवजी ने 33 वर्ष की आयु में रामदेवरा जैसलमेर, राजस्थान में भाद्रपद एकादशी विक्रम संवत् 1442 को जीवित समाधि ले ली और अपने नश्वर शरीर को त्याग दिया

रामदेव जी के घोड़े का नाम क्या था?

बाबा रामदेवजी के घोड़े का नाम लीला घोड़ा था

बाबा रामदेव जी मेघवाल थे क्या?

बाबा रामदेवजी मेघवाल नहीं थे लेकिन मेघवाल समाज लोग इन्हे सायर मेघवाल के पुत्र है।

बाबा रामदेवजी जन्म स्थान

उण्डू काश्मीर बाड़मेर राजस्थान

बाबा रामदेव जी का जन्म किस ईस्वी सन हुआ।

बाबा रामदेव जी महाराज का जन्म 1352 ईस्वी सन में हुआ था तथा समाधि 1385 ईस्वी सन रामदेवरा में थी।

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