आधे हिंदुस्तान के बदले अपनी छोटी सी मेवाड़ रियासत ना छोड़ने वाले महान शूरवीर पराक्रमी महाराणा प्रताप ऐसे शासक थे जिन्होंने कभी भी किसी के सामने अपना सिर नहीं झुकाया, इन्होंने सिर झुकाया है तो सिर्फ अपने आराध्य एकलिंग जी के सामने।
जिस समय पूरे हिंदुस्तान पर अकबर ने अपना शासन चलाया और पूरा हिंदुस्तान अकबर के सामने नतमस्तक हो गया उस समय सिर्फ एक ही ऐसी रियासत थी जो अकबर के सामने कभी ना झुकी वो रियासत थी मेवाड़ रियासत और यहां के शासक थे महाराणा प्रताप सिंह।
महाराणा प्रताप ने कसम खा ली थी कि “मैं घास की रोटी और जमीन पर लेट जाऊंगा, परंतु किसी की अधीनता कभी स्वीकार नहीं करूंगा” और इस कसम पर वह हमेशा अटल रहे और अपने राज्य मेवाड़ को कभी मुगलों के अधीन नहीं होने दिया।
महाराणा प्रताप जन्म, माता-पिता, राज्याभिषेक, विवाह, पत्नी, पुत्र, निधन
पूरा नाम | महाराणा प्रताप सिंह सिसोदिया |
जन्म | 9 मई 1540, कुंभलगढ़ दुर्ग |
पिता का नाम | राणा उदयसिंह |
माता का नाम | जयवंता बाई |
रियासत | मेवाड़ रियासत |
राज्याभिषेक | 28 फरवरी, 1572 गोगुंदा मे |
शिक्षक | राघवेंद्र |
विवाह | सन 1557 |
जीवनसंगी | अजबदे पँवार |
संतान | 16 पुत्र |
धर्म | सनातन हिन्दू |
राजघराना | सिसोदिया |
हल्दीघाटी युद्ध | 18 जून 1576 |
भाई | 4 भाई |
निधन | 19 जनवरी 1597, चवाड़ |
पुत्र | 16 बच्चे |
बड़े पुत्र | अमर सिंह |
लंबाई | 7.4 फीट |
घोड़े का नाम | चेतक |
प्रिये हाथी का नाम | रामप्रसाद |
भाला-कवच 2 तलवारों का वजन | 208 kg |
सबसे बड़ा शत्रु | मुगल अकबर |
महाराणा प्रताप का जीवन परिचय
जिनके नाम मात्र से अकबर कापता था ऐसे महान शूरवीर महाराणा प्रताप सिंह का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के कुंभलगढ़ दुर्ग में हुआ था इनके पिता का नाम राणा उदय सिंह तथा माता का नाम जयवंता बाई था हिंदी कैलेंडर के अनुसार इनकी जयंती हर वर्ष ज्येष्ट शुक्ल तृतीया के दिन मनाई जाती है
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि महाराणा प्रताप सिंह की जन्म कुंडली से यह पता चलता है कि उनका जन्म पाली जिले के राजमहल में हुआ है क्योंकि उनकी माता जयवंता बाई सोनगरा अखेराज की पुत्री थी जो पाली जिले के थे और हिंदू संस्कृति में ऐसा माना जाता है किसी भी बच्चे का जन्म पहली बार उसकी माता के अपने पीहर में होता है।
कुछ इतिहासकारों ने ऐसा भी लिखा है कि जिस समय Maharana Pratap singh का जन्म हुआ था उस समय उनके पिता राणा उदयसिंह युद्ध और असुरक्षा से गिरे हुए थे, जैसे ही उन्हें इस बात की खबर हुई कि उनको पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई है तो उन्होंने उन युद्ध में विजय प्राप्त की, महाराणा प्रताप मेवाड़ में सिसोदिया राजवंश के राजा थे यह वीर पराक्रमी देशभक्त प्रजा-प्रिये थे
महाराणा प्रताप को बचपन से ही तलवार और ढाल की शिक्षा दी जाने लगी, इनके पिता इन्हें अस्त्र शास्त्र का ज्ञान सिखाते थे और बचपन में इनको तलवार में निपुणता हासिल करवा दी उसके बाद इनके पिता ने इनकी शिक्षा के लिए इन्हें गुरु राघवेंद्र के पास भेज दिया, राघवेंद्र जी ने पूर्ण रूप से सारी अस्त्र-शस्त्र की शिक्षाएं प्रदान की और एक ऐसे कुशल योद्धा तैयार किया, जिससे कोई भी मुकाबला नहीं कर सकता था क्योंकि अकबर खुद भी Maharana Pratap singh के इस युद्ध कौशल की वजह से डर के कभी भी इनके सामने नहीं आता था ।
बचपन से ही महाराणा प्रताप बुद्धि से इतनी तेज और अस्त्र-शस्त्र की कलाओं में निपुणता हासिल कर ली और प्रजा के इतने प्रिय राजकुमार बने कि सभी लोग उनको राजा के रूप में देखने लगे, धीरे धीरे महाराणा प्रताप बड़े होते हैं।
इसी बीच अकबर ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया, इसी युद्ध में Maharana Pratap की सभी खास मित्र और सामंत जैसे जयमल, पत्ता, कला में अपने प्राणों की आहुति दी थी यह विनाशकारी युद्ध जिसमें राजपूतों ने अपने अदम्य साहसी वीरता से अकबर की सेना में हड़कंप मचा दिया था, अकबर ने भी इस युद्ध में कुछ ऐसे दृश्य देगी जैसे इससे पहले उसने कभी नहीं देखी थी इसी वजह से अकबर ने जयमल ओर पत्ता की प्रतिमा अपने आगरा के दुर्ग की मुख्य द्वार पर लगवाई
और यहां से महाराणा प्रताप और उनके परिवार वालों को मेवाड़ छोड़ना पड़ा और वे उदयपुर की तरफ चले गए वहां पर उन्होंने उदयपुर में एक नए किले का निर्माण किया और वहीं पर अपना जीवन यापन करने लगे ।
इसी बीच राणा उदय सिंह की तबीयत काफी खराब होने लगी और उस वजह से उनका देहांत हो गया। यहां पर राणा उदय सिंह की दूसरी पत्नी रानी भटियाणी ने षड्यंत्र करके अपने पुत्र जगमाल को राजा घोषित करवा दिया और Maharana Pratap singh को जंगलों में निर्वाचित होने के लिए भेज दिया गया, उसके बाद जब महाराणा प्रताप को यह सारी सच्चाई पता चली तो उन्होंने फिर से उदयपुर पर आक्रमण करके जगमाल को गद्दी से उतार दिया, क्योंकि जगमाल में प्रजा के ऊपर काफी सारे अत्याचार करने शुरू कर दिए और उस मुगल से हाथ मिला लिया था।
इस कारण महाराणा प्रताप के कुछ खास सामंतों ने उन्हें यह कदम उठाने के लिए कहा कि प्रजा के हित में आप राणा जगमाल को वहां से हटा दें इस तरीके से महाराणा प्रताप ने उदयपुर पर वापस विजय प्राप्त कर ली और वहीं पर रहते हुए मुगल अकबर के विरुद्ध युद्ध के लिए तैयार रहें इसी बीच हल्दीघाटी के युद्ध का बिगुल बज उठा और हल्दीघाटी के युद्ध में Maharana Pratap singh ने अकबर की सेना के छक्के छुड़ा दिए थे ।
इसी तरह से महाराणा प्रताप ने अपने जीवन में कभी भी अकबर के सामने अधीनता स्वीकार नहीं की और अपने देश प्रेम और अपनी प्रजा के लिए सदैव अकबर से लोहा लेते रहे अकबर भी महाराणा प्रताप के नाम तक से डरता था और अकबर इसी वजह से कभी राणा प्रताप के सामने सामने वाले युद्ध में नहीं आया, उसने हमेशा अपने सेनापति को ही युद्ध के लिए भेजा।
अंत समय में 19 जनवरी 1597 को महाराणा प्रताप की दिल मे घाव होने की वजह से देहांत हो गया, परंतु महाराणा प्रताप ने लोगों के दिलों में इस तरीके से छाप छोड़ी कि वह आज भी लोगों के दिलों में और इस धारा के कण-कण में उनका वास है।
महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक
जब राणा उदयसिंह की मृत्यु हो गई तो उसके बाद वहां का सिहासन खाली हो गया, तब उदयसिंह की सबसे छोटी रानी ने श्हड्यंत्र कर अपने पुत्र जगमाल को राजा घोषित करवा दिया, परंतु इस पर सारे सामंत और जनता ने विरोध किया, लेकिन महाराणा प्रताप ने अपने पिता के अंतिम शब्दों को याद रखते हुए राज्य शासन को त्याग कर जंगलों में चले गए उसके बाद जगमाल ने अकबर के साथ संधि कर ली और मेवाड़ को अकबर की अधीन अधीनता स्वीकार कर ली तब उन्होंने अपने प्रमुख सामंतों और जनता की बात सुनकर पुन राज संभाल लेने का निर्णय ले लिया।
महाराणा प्रताप का पहली बार राज्यअभिषेक गोगुंदा की पहाड़ियों में 28 फरवरी 1572 ईसवी में हुआ । Maharana Pratap का दूसरी बार राजतिलक कुंभलगढ़ दुर्ग में 1 मार्च 1573 को हुआ इस समय मारवाड़ का राव चंद्रसेन भी वहीं मौजूद थे।
महाराणा प्रताप का विवाह Maharana Pratap wife
महाराणा प्रताप का बचपन में अजबदे पँवार के साथ विवाह हो चुका था, महाराणा प्रताप ने कुल 11 विवाह किए थे महाराणा प्रताप नहीं चाहते थे कि वह इतने ज्यादा वैवाहिक संबंध बनाए, किंतु अकबर एक-एक करके राजपूताने मैं राजपूतों के साथ विवाह रहता था जिसके कारण सारे राजपूत अकबर का साथ देने लगे थे इसी कारण महाराणा प्रताप ने भी इसी नीति का अनुसरण किया और ज्यादा से ज्यादा विवाह करने शुरू कर दिए इस तरीके से Maharana Pratap singh ने कुल 11 विवाह किए और उनके 16 पुत्र थे ।
महाराणा प्रताप की सबसे बडे पुत्र का नाम अमर सिंह था जो कि काफी वीर साहसी योद्धा था उन्होंने अपने पिता के द्वारा बताए गए रास्तो का अनुसरण किया और कभी भी अकबर के सामने अधीनता स्वीकार नहीं की
कहा जाता है कि अमर सिंह महाराणा प्रताप से भी कई गुना शक्तिशाली राजा साबित हुए किंतु अपने राज्य में भुखमरी और जनता का बुरा हाल देखकर अकबर के साथ एक संधि की थी जिसमें उन्होंने अकबर को कुछ शर्तों के साथ इस संधि को पूरा किया था, ताकि वो अपने राज्य और अपनी जनता का पूरी तरीके से ध्यान रख सके।
चित्तौड़गढ़ का युद्ध
अकबर की नीति हमेशा अपने राज्य के विस्तार-वाद की रही। इसीलिए अकबर ने 1567 ईस्वी में चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण कर दिया इस समाया महारणा प्रताप की आयु 27 वर्ष की ही थी । अकबर ने किले के चारों तरफ से घेराबंदी करना शुरू कर दी, जिसमें 8000 राजपूत सैनिक और 40,000 किसान किले के अंदर बंद हो गए।
अकबर ने घेराबंदी 20 अक्टूबर 1567 – 23 फ़रवरी 1568 तक चली और अंत उदय सिंह और उसके परिवार को राज महल से सुरक्षित बाहर निकलना पड़ा क्योंकि इतने लंबे समय तक पानी और खाने की व्यवस्था बंद किले में होना नामुमकिन था इस तरीके से चित्तौड़गढ़ पर अकबर का अधिपति हो गया। इसके बाद अकबर ने उदय सिंह और उसके परिवार को ढूंढने के लिए काफी सारे प्रयास किया लेकिन वह सारे प्रयास असफल रहे।
उधर युद्ध में अब राजपूतों ने अंतिम युद्ध का निर्णय कर लिया और सारी राजपूतानियो ने जौहर कर लिया उसके बाद राजपूतों ने घोर युद्ध किया जिसमें बड़े-बड़े वीर योद्धा अपने पराक्रम और शौर्य के बलिदान को देते हुए वीरगति को प्राप्त हुये।
हल्दीघाटी का युद्ध
18 जून 1576 में हल्दीघाटी के इस ऐतिहासिक युद्ध को लड़ा गया जिसमें अकबर की सेना का नेतृत्व जयपुर के राजा मानसिंह प्रथम कर रहे थे, इस युद्ध में महाराणा प्रताप का साथ आदिवासी जनजाति भीलों ने दिया
हल्दीघाटी के युद्ध से पहले अकबर ने महाराणा प्रताप के पास 4 समझौता भी भेजे कि अकबर की अधीनता स्वीकार कर ले, लेकिन महाराणा प्रताप ने ऐसा नहीं किया उसके बाद अकबर ने एक बहुत बड़ी सेना के साथ उदयपुर पर आक्रमण करने के लिए मानसिंह को भेज दिया। मानसिंह को पता था कि उदयपुर हम तभी पहुंच पाएंगे जब हम हल्दीघाटी के दरे को पार करेंगे और वह हल्दीघाटी पूरा पहाड़ी क्षेत्र से गिरा हुआ था और दूसरी तरफ जंगल जहां पर भीलों का शासन चलता था मानसिंह ने जैसे हल्दीघाटी में प्रवेश करने के लिए उस दर्रे को पार करने की कोशिश की तो भीलों ने छापामार पद्धति से उन पर आक्रमण बोल दिया, इससे अकबर की सेना में हड़कंप मच गया।
आखिरकार किसी तरह की तरफ से मुगल सेना हल्दीघाटी तक पहुंची गई उसके बाद यहां पर एक भयंकर युद्ध लड़ा गया, जिसमें महाराणा प्रताप ने अपनी 3000 घुड़सवार सैनिकों और 400 भील धनुर्धर सेनिकों को युद्ध के मैदान में उतारा। उधर अकबर के सेनापति मानसिंह ने 5000 से 10,000 सैनिकों की कमान अपने हाथ में संभाल रखी थी 3 घंटे तक चला भयंकर युद्ध में महाराणा प्रताप में 1600 सैनिकों का बलिदान किया और अकबर ने 3000 से 7000 सैनिक को खो दिया
3 घंटे के बाद महाराणा प्रताप बुरी तरीके से जख्मी हो गए, तब उनके खास मंत्रियों ने उनको युद्ध भूमि से दूर जाने के लिए कहा राणा प्रताप इस पर नहीं माने, परंतु जबर्दस्ती युद्धभूमि से बाहर निकाल दिया गया। इसके बाद अकबर की सेना गोगुंदा के आसपास ही कब्जा कर पाई जबकि महाराणा प्रताप जंगल के रास्ते से सुरक्षित निकल गए।
चेतक का बलिदान
जब हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप बुरी तरीके से जख्मी हुए उस समय महाराणा प्रताप के घोड़े के पांव में भी अकबर के हाथी के आगे लगी तलवार से पांव कट गया। उसके बाद महाराणा प्रताप के घोड़े चेतक महाराणा प्रताप को सुरक्षित युद्ध भूमि से बाहर निकालने में अपना योगदान दिया और आगे जाकर 28 फीट के लंबे नाले को लागने के बाद महाराणा प्रताप के घोड़े का निधन हो गया। इस समय अकबर के दो प्रमुख सेनापति उनका पीछा कर रहे थे इसी समय Maharana Pratap के भाई शक्ति सिंह ने आकर महाराणा प्रताप को अपना घोड़ा दिया और चेतक की वहीं पर समाधि बनाकर महाराणा प्रताप को आगे आगे के लिए रवाना कर दिया।
राजस्थान की हल्दीघाटी गांव में चेतक की समाधि आज भी बनी हुई है और राजस्थान में चेतक घोड़े पर कई सारे लोकगीत भी बने हुए हैं शायद विश्व का एक मात्र ऐसा घोड़ा है जिस पर इतने सारे गीत कविताएं बने हुए हैं चेतक ने अपनी स्वामी भक्ति और देश प्रेम, बुद्धिमता का परिचय देते हुए महाराणा प्रताप को जख्मी होने के बाद भी युद्ध में से बाहर निकाला था।
महाराणा प्रताप की मृत्यु और अकबर की प्रतिक्रिया
अकबर ने महाराणा प्रताप को अपने सामने चुकाने के लिए जीवन भर कई प्रयास किए परंतु महाराणा प्रताप अकबर के सामने कभी भी नहीं झुके।
एक बार महाराणा प्रताप जंगल में शिकार करने के लिए गए हुए थे उस समय शिकार करते समय एक शेर ने उनके छाती पर पंजा मारा जिस कारण उनके हदय में बुरी तरीके से आघात पहुंचा और अंदर ही अंदर घाव काफी ज्यादा बढ़ गया था इसके बाद Maharana Pratap की स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ता गया और 19 जनवरी 1597, चवाड़ में महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई।
ऐसा कहा जाता है कि जब महाराणा प्रताप की मृत्यु की खबर अकबर तक पहुंची, तब अकबर ने रोते हुए कहा कि “मैंने आज तक कई युद्ध लड़े कई, सारे राजाओं का मेरे से सामना हुआ, परंतु महाराणा प्रताप जैसे साहसी निडर राजा को मैंने आज तक नहीं देखा, जिसने कभी भी अपने छोटे से राज्य के लिए मेरे सामने अधीनता स्वीकार नहीं की , उन्होंने Maharana Pratap को स्वयं से कहीं गुना सर्वोच राजा माना, जो अपनी प्रजा के हित के लिए कभी किसी के सामने नहीं झुका।
अकबर ने इस समय यह भी कहा था कि जब भी भारत में अकबर और महाराणा प्रताप का नाम लिया जाएगा, तो महाराणा प्रताप का नाम पूरे अदम से मेरे से पहले लिया जाएगा
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महाराणा प्रताप
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