पृथ्वीराज चौहान (1166–1192) एक महत्वपूर्ण और वीर राजपूत योद्धा थे, जो 12वीं सदी के दौरान भारत में चौहान वंश के राजा थे। उन्हें पृथ्वीराज III के नाम से भी जाना जाता है। उनकी राजधानी अजमेर और दिल्ली में थी, और वे भारतीय उपमहाद्वीप में गाहड़वाल और गोरी वंशों के बीच संघर्ष के केंद्र में थे।
पृथ्वीराज चौहान का सबसे प्रसिद्ध कार्य मोहम्मद गोरी के साथ उनके संघर्ष के लिए जाना जाता है। Prithviraj Chauhan ने 1191 में तराइन के पहले युद्ध में मोहम्मद गोरी को हराया, लेकिन 1192 में तराइन के दूसरे युद्ध में पराजित हो गए, जिसके परिणामस्वरूप भारतीय उपमहाद्वीप में इस्लामिक शासन की नींव पड़ी।
आज के इस पोस्ट में हम आपको बताएँगे पृथ्वीराज चौहान की जीवनी, आयु, राजा, पत्नी, शिक्षा-दीक्षा, जाति, राज्य, युद्ध, राजनैतिक जर्नी के बारे में बताएंगे।
Prithviraj Chauhan Biography in Hindi
पूरा नाम (Full Name) | पृथ्वीराज चौहान III |
निक नाम (Nick Name) | सम्राट पृथ्वीराज चौहान |
जन्म (Birthday) | जन्म 1166 ईस्वी |
उम्र (Age) | 26 वर्ष |
जन्म स्थान (Birth Place) | अजमेर, राजस्थान |
धर्म (Religion) | हिन्दू |
Prithviraj Chauhan Birth, Place, Family
पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1166 ईस्वी में हुआ था। उनका जन्मस्थान अजमेर, राजस्थान था, जो उस समय चौहान वंश की राजधानी थी।
परिवार:
पृथ्वीराज चौहान का संबंध राजपूत चौहान वंश से था, जो उस समय उत्तरी भारत के प्रमुख शक्तिशाली वंशों में से एक था।
- पिता: उनके पिता का नाम सोमेश्वर चौहान था, जो अजमेर के राजा थे। सोमेश्वर चौहान एक पराक्रमी राजा थे, और Prithviraj Chauhan को उनसे युद्ध कौशल और प्रशासनिक क्षमताएँ विरासत में मिलीं।
- माता: उनकी माता का नाम कर्पूर देवी था। वह कन्नौज के गहड़वाल वंश से थीं, जो एक शक्तिशाली वंश था।
- पत्नी: पृथ्वीराज चौहान की पत्नी का नाम संयोगिता था। संयोगिता कन्नौज के राजा जयचंद की पुत्री थीं। संयोगिता और पृथ्वीराज की प्रेम कथा भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध है। माना जाता है कि पृथ्वीराज ने संयोगिता को स्वयंवर से उठाकर लाया था, जिसके कारण जयचंद और पृथ्वीराज के बीच दुश्मनी और गहरी हो गई थी।
- वंश: पृथ्वीराज चौहान चौहान वंश के थे, जिसे चाहमान वंश के रूप में भी जाना जाता है। यह वंश उत्तर-पश्चिमी भारत में प्रभावशाली था, और उनकी राजधानी अजमेर और दिल्ली में थी।
पृथ्वीराज चौहान का जीवन भारतीय इतिहास के वीरता और संघर्ष का एक प्रतीक है, और उनके परिवार ने उनकी वीरता की धरोहर को बनाए रखा।
पिता का नाम (Father) | सोमेश्वर चौहान |
माता का नाम (Mother) | कर्पूर देवी |
पत्नी का नाम (Wife) | संयोगिता |
Prithviraj Chauhan Education
पृथ्वीराज चौहान की शिक्षा एक राजकुमार के रूप में अत्यंत उत्तम तरीके से हुई थी। Prithviraj Chauhan ने बचपन से ही युद्ध कौशल, राजनीति, और शास्त्रों की शिक्षा दी गई। उनके शिक्षकों ने उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में निपुण बनाया, जिससे वे एक महान योद्धा और कुशल प्रशासक बने।
प्रमुख शिक्षा:
- युद्ध और सैन्य शिक्षा: पृथ्वीराज चौहान ने बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारबाजी, तीरंदाजी, और अन्य युद्ध कलाओं में महारत हासिल की। उन्हें अपने राज्य की सुरक्षा और युद्ध के रणनीतिक कौशल में पारंगत किया गया। उनकी युद्ध कौशल और वीरता के किस्से कई ग्रंथों में मिलते हैं, जिनमें पृथ्वीराज रासो भी शामिल है।
- राजनीति और प्रशासन: पृथ्वीराज ने राजनीति और प्रशासन की भी गहन शिक्षा प्राप्त की थी। उन्हें अपने राज्य के संचालन और प्रजा के कल्याण के लिए आवश्यक प्रशासनिक गुणों की शिक्षा दी गई। उन्होंने अपने राज्य को कुशलतापूर्वक चलाया और एक महान शासक के रूप में पहचाने गए।
- कला और साहित्य: पृथ्वीराज को साहित्य में भी गहरी रुचि थी। उनके दरबार में महान कवि चंदबरदाई थे, जिन्होंने पृथ्वीराज रासो की रचना की। यह महाकाव्य उनकी वीरता और जीवन के घटनाक्रमों को दर्शाता है। इससे यह पता चलता है कि Prithviraj Chauhan न केवल एक योद्धा थे, बल्कि साहित्य और कला प्रेमी भी थे।
- शास्त्र और धार्मिक शिक्षा: उन्होंने धर्म, दर्शन, और अन्य शास्त्रों का भी अध्ययन किया था। इस प्रकार की शिक्षा से वे धर्म और संस्कृति के प्रति सजग रहे और धर्म के प्रति उनके सम्मान ने उन्हें एक आदर्श शासक के रूप में उभारा।
पृथ्वीराज चौहान की शिक्षा ने उन्हें न केवल एक महान योद्धा बनाया, बल्कि एक कुशल शासक और जनप्रिय राजा भी बनाया, जिन्होंने अपनी वीरता और धैर्य से इतिहास में अमिट छाप छोड़ी।
Prithviraj Chauhan Political Journey
पृथ्वीराज चौहान की राजनीतिक यात्रा भारतीय इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण और वीरता से भरी कहानियों में से एक है। उनकी राजनीतिक यात्रा बचपन से ही संघर्ष, युद्ध, और वीरता की मिसाल रही है। वह चौहान वंश के महान शासक बने और दिल्ली तथा अजमेर की संयुक्त राजगद्दी पर बैठे।
पृथ्वीराज चौहान की राजनीतिक यात्रा:
- अजमेर का सिंहासन:
पृथ्वीराज चौहान का जन्म 1166 ईस्वी में हुआ था। बहुत छोटी उम्र में ही, उन्होंने अपने पिता राजा सोमेश्वर चौहान की मृत्यु के बाद अजमेर की राजगद्दी संभाली। तब वे बहुत युवा थे, लेकिन अपनी योग्यता और शिक्षा के कारण उन्होंने जल्दी ही राज्य का कुशलतापूर्वक संचालन शुरू कर दिया। - दिल्ली का शासन:
पृथ्वीराज ने दिल्ली पर भी शासन किया। उनका दिल्ली और अजमेर पर संयुक्त अधिकार था, जिसने उन्हें उत्तर भारत का एक शक्तिशाली राजा बना दिया। उनके शासनकाल में दिल्ली और अजमेर को सामरिक और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण माना जाता था। - जयचंद से संघर्ष:
कन्नौज के राजा जयचंद और Prithviraj Chauhan के बीच संबंध अच्छे नहीं थे। जयचंद ने संयोगिता के स्वयंवर में पृथ्वीराज को आमंत्रित नहीं किया, क्योंकि वह उनसे ईर्ष्या करता था। लेकिन पृथ्वीराज ने अपनी वीरता से संयोगिता का हरण कर लिया, जिससे जयचंद और पृथ्वीराज के बीच दुश्मनी और बढ़ गई। यह घटना पृथ्वीराज की राजनीतिक यात्रा में एक महत्वपूर्ण मोड़ थी, क्योंकि जयचंद ने बाद में मोहम्मद गोरी की मदद की, जो पृथ्वीराज के पतन का कारण बना। - मोहम्मद गोरी से संघर्ष:
पृथ्वीराज चौहान की सबसे प्रमुख राजनीतिक चुनौती मोहम्मद गोरी के साथ हुई। गोरी ने भारत पर आक्रमण किया और उसने पृथ्वीराज के राज्य पर कब्जा करने का प्रयास किया।
- पहला तराइन का युद्ध (1191): 1191 में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी के बीच पहला तराइन का युद्ध हुआ। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने गोरी को बुरी तरह हराया। गोरी को बंदी बनाकर छोड़ दिया गया, लेकिन गोरी ने इस हार को सहन नहीं किया और अगले वर्ष फिर से हमला किया।
- दूसरा तराइन का युद्ध (1192): 1192 में दूसरा तराइन का युद्ध हुआ, जो भारतीय इतिहास का एक निर्णायक युद्ध था। इस बार मोहम्मद गोरी बेहतर तैयारी के साथ आया और पृथ्वीराज चौहान को पराजित कर दिया। पृथ्वीराज को बंदी बना लिया गया और कई कथाओं के अनुसार, उन्हें बाद में मृत्यु दंड दिया गया।
मृत्यु और विरासत:
तराइन के दूसरे युद्ध में पराजय के बाद पृथ्वीराज चौहान को मोहम्मद गोरी द्वारा बंदी बना लिया गया और उन्हें मृत्युदंड दिया गया। उनकी मृत्यु के बाद भारत में इस्लामी शासन का विस्तार हुआ। उनकी वीरता, साहस और संघर्ष की कहानियाँ आज भी भारतीय इतिहास और साहित्य में जीवित हैं। चंदबरदाई द्वारा रचित पृथ्वीराज रासो में उनकी वीरता और मोहम्मद गोरी से संघर्ष का विस्तार से वर्णन है।
मोहम्मद गोरी की मृत्यु
खैर 1191 के बाद किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि इतनी बुरी हार के एक साल बाद ही मोहम्मद गौरी लौट आएगा. लेकिन 1192 में मोहम्मद गौरी लौट आया. इस बार जयचंद ने गद्दारी दिखाई और गौरी के साथ जा मिला. 18वीं बार हुए इस युद्ध में मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान Prithviraj Chauhan को मात दिया और उन्हें बंदी बनाकर अपने साथ ले गया. पृथ्वीराज चौहान के साथ उनके मित्र चंदबरदाई को भी बंदी बना लिया गया. सजा के तौर पर गर्म सलाखों से पृथ्वीराज की आंखें फोड़ दी गई. लेकिन चौहान ने हिम्मत नहीं हारी. मोहम्मद गोरी को पृथ्वीराज चौहान के शब्दभेदी बाण चलाने वाली कला के बारे में पता चला और आखिरी इच्छा के रूप में चंदबरदाई के कहने पर इसके प्रदर्शन की इजाजत दे दी. यहीं पर “चार बांस, चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण.. ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान” का जिक्र आता है. पृथ्वीराज चौहान के लिए मोहम्मद गोरी की दूरी मापने के लिए चंद बरदाई का यह संकेत काफी था. मोहम्मद गौरी ने जैसे ही शाबाश बोला, आवाज सुनकर पृथ्वीराज चौहान ने शब्द भेदी बाण चला डाला और मोहम्मद गौरी की मृत्यु हो गई. हालांकि इसको लेकर भी इतिहासकारों में मतांतर है.
निष्कर्ष:
पृथ्वीराज चौहान की राजनीतिक यात्रा वीरता, साहस, और संघर्ष की प्रतीक है। उन्होंने अपने जीवन में कई युद्ध लड़े और अपने राज्य की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास किया। उनका शासनकाल भारतीय इतिहास में राजपूत वीरता और साहस का स्वर्णिम युग माना जाता है।
Prithviraj Chauhan Achievement
पृथ्वीराज चौहान भारतीय इतिहास के महान और वीर राजाओं में से एक थे। उनके शासनकाल में उन्होंने कई महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ हासिल कीं, जो उनके साहस, युद्ध कौशल और नेतृत्व क्षमता को दर्शाती हैं। उनकी प्रमुख उपलब्धियाँ इस प्रकार हैं:
1. दिल्ली और अजमेर पर संयुक्त शासन:
पृथ्वीराज चौहान ने दिल्ली और अजमेर दोनों पर सफलतापूर्वक शासन किया। यह उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक थी, क्योंकि यह उन्हें उत्तर भारत के सबसे शक्तिशाली शासकों में से एक बनाता था। उन्होंने अपने राज्य का विस्तार किया और इसे सुरक्षित रखा।
2. पहले तराइन के युद्ध में विजय (1191):
पृथ्वीराज की सबसे बड़ी सैन्य उपलब्धियों में से एक 1191 में मोहम्मद गोरी के खिलाफ पहला तराइन का युद्ध था। इस युद्ध में उन्होंने गोरी की सेना को बुरी तरह से पराजित किया और गोरी को बंदी बना लिया। यह विजय भारतीय वीरता और साहस का प्रतीक मानी जाती है।
3. संयोगिता का स्वयंवर और हरण:
पृथ्वीराज चौहान की एक अन्य प्रमुख उपलब्धि कन्नौज के राजा जयचंद की पुत्री संयोगिता का हरण था। जयचंद और पृथ्वीराज के बीच शत्रुता थी, और जयचंद ने पृथ्वीराज को अपनी बेटी के स्वयंवर में आमंत्रित नहीं किया। लेकिन पृथ्वीराज ने अपनी वीरता से संयोगिता का हरण किया और उससे विवाह किया। यह घटना उनकी साहसिकता और रणनीतिक कौशल को दर्शाती है।
4. सांस्कृतिक और साहित्यिक योगदान:
पृथ्वीराज चौहान केवल एक वीर योद्धा ही नहीं, बल्कि कला और साहित्य के संरक्षक भी थे। उनके दरबार में महान कवि चंदबरदाई थे, जिन्होंने पृथ्वीराज रासो की रचना की। यह महाकाव्य पृथ्वीराज के जीवन और वीरता का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। उनके शासनकाल में साहित्य और कला का भी प्रोत्साहन हुआ, जिससे उनके दरबार की प्रतिष्ठा और बढ़ी।
5. मोहम्मद गोरी के आक्रमणों का विरोध:
पृथ्वीराज चौहान ने कई बार विदेशी आक्रमणकारियों, विशेष रूप से मोहम्मद गोरी, के हमलों का डटकर सामना किया। यद्यपि वे 1192 में दूसरे तराइन के युद्ध में पराजित हो गए, लेकिन उनके साहस और युद्ध कौशल ने उन्हें एक महान योद्धा के रूप में स्थापित किया। उनका विरोध विदेशी शक्तियों के खिलाफ भारतीय राजाओं के संघर्ष का प्रतीक बना।
6. शासन और प्रशासन में दक्षता:
पृथ्वीराज चौहान ने अपने राज्य का कुशल प्रशासन किया। उन्होंने अपने राज्य में कानून व्यवस्था को बनाए रखा और अपनी प्रजा के कल्याण के लिए कई योजनाएँ चलाईं। उनके शासनकाल में प्रजा उनसे संतुष्ट थी और उन्होंने अपने राज्य को समृद्ध और सुरक्षित रखा।
निष्कर्ष:
पृथ्वीराज चौहान की उपलब्धियाँ केवल युद्ध और वीरता तक सीमित नहीं थीं, बल्कि उन्होंने अपने शासनकाल में कला, साहित्य और संस्कृति का भी विकास किया। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि यह थी कि उन्होंने अपने राज्य की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी और अपनी वीरता के लिए सदैव अमर हो गए। उनके जीवन और उपलब्धियों ने उन्हें भारतीय इतिहास में वीरता और साहस का प्रतीक बना दिया।
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